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लौटती यादें


रात अपने कमरे में  हमेशा की तरह मैं तनहा था 
खिड़कियां हवा के जोर से शोर मचा रही थी 
दरवाजा बंद था और फिर एक आहट सी हुई 
वो उसके नाज़ुक क़दमों की सी ही आहट थी
दर पर दस्तक का इन्तज़ार न हो पाया मुझसे 
दौड़ कर दरवाजा खोल दिया मैंने तपाक से
वहां कोई न था मैं गुमशुम खड़ा रहा देर तक
सोचता रहा तुझे और फ़िर लौट आयी तेरी यादें 
अब ये अंधेरा कमरा जिसे घर बनना था 
तेरी यादों से रौशन है, मेरी आंखें तर ब तर है 
अब देरी यादें मुझे और तन्हा कर रही है
जाने वाला जब लौट कर वापस नहीं आता 
क्यों आती है लौट लौट कर फिर वहीं यादें


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8 Comments

Suryansh

08-Nov-2022 10:33 AM

बहुत ही सुंदर सृजन

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Punam verma

08-Nov-2022 09:30 AM

Nice

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Abhinav ji

08-Nov-2022 08:53 AM

Very nice👍

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